मोदी सरकार की प्राथमिकताएं

धानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रियों की शपथ के साथ ही मोदी सरकार की दूसरी पारी शुरू हो गई। चूंकि यह सरकार प्रचंड बहुमत से बनी है इसलिए उसके प्रति उम्मीदें भी बढ़ गई हैं। गरीब, किसान, आम आदमी, व्यापारी से लेकर उद्योगपति तक की उम्मीदें और बढ़ गई हैं। मोदी के मंत्रिमंडल में एक बड़ी संख्या में नए मंत्री है। पिछली सरकार के करीब 40 प्रतिशत मंत्री नई मंत्रिपरिषद में नहीं हैं। अमित शाह का तीसरे नंबर पर शपथ लेना और गृह मंत्रलय संभालना यह बताता है कि मोदी अपने सबसे भरोसेमंद सहयोगी को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देना चाह रहे थे। शायद इसलिए भी, क्योंकि इस बार खराब सेहत के कारण अरुण जेटली ने सरकार में शामिल होने से इन्कार किया। माना जाता है कि सेहत के कारण ही सुषमा स्वराज ने भी मंत्री पद की शपथ नहीं ली। अरुण जेटली और सुषमा स्वराज, दोनों ही पिछली सरकार के प्रभावी मंत्री थे। इनकी कमी महसूस होगी। सुषमा स्वराज की जगह एस जयशंकर को मंत्रिपरिषद में शामिल कर विदेश मंत्रलय सौंपा गया है। ऐसा करके प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया कि वह विदेश नीति को पहले की तरह ही विशेष महत्व देते रहेंगे। जयशंकर विदेश मंत्री के लिए सर्वथा उपयुक्त पसंद हैं। वह विदेश सचिव रहे हैं और साथ ही अमेरिका और चीन में राजदूत रह चुके हैं। अरुण जेटली की अनुपस्थिति में निर्मला सीतारमण वित्त मंत्री के रूप में पहली पसंद इसलिए बनीं, क्योंकि अर्थशास्त्र की जानकार होने के साथ ही उन्हें वित्त-वाणिज्य का भी अनुभव है। वह कुछ समय के लिए वाणिज्य मंत्री भी रह चुकी हैं। चूंकि इस समय अर्थव्यवस्था चुनौतियों का सामना कर रही है इसलिए उनके साथ ही प्रधानमंत्री को भी इस पर खास ध्यान देना होगा कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त न होने पाए।


आर्थिक क्षेत्र की तरह शिक्षा का क्षेत्र भी तमाम समस्याओं से दो-चार है। प्राइमरी से लेकर उच्चतर शिक्षा तक के ढांचे में सुधार की जरूरत है। हाल में दसवीं और बारहवीं के नतीजों में जिस तरह 90 प्रतिशत से अधिक अंकों की होड़ देखने को मिली उससे यह भी साफ है कि माध्यमिक शिक्षा में भी सुधार की सख्त जरूरत है। एक विकासशील देश होने के नाते हमारी शिक्षा ज्ञान और बुद्धि कौशल की पर्याय होनी चाहिए। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो देश की भावी आवश्यकता के अनुरूप युवाओं को तैयार कर सके। आज ऐसी स्थिति नहीं है। स्कूल-कॉलेज से निकलने वाले युवा अनुशासन के महत्व से भली तरह परिचित नहीं। उनमें नैतिक मूल्यों का भी अभाव दिखता है। इस सबका असर देश के सामाजिक एवं आर्थिक माहौल पर पड़ रहा है। एक समस्या यह भी है कि देश को अनुशासित रखने और कानून एवं व्यवस्था को दुरुस्त रखने का काम जिस पुलिस पर है उसका स्तर भी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं। हमारी पुलिस संख्याबल के अभाव का भी सामना कर रही है और संसाधन की कमी का भी। कानून एवं व्यवस्था की स्थिति को दुरुस्त करने में आज तकनीक की भूमिका बढ़ गई है। यह भारत में भी बढ़नी चाहिए। कानून-व्यवस्था को सुदृढ़ करना मोदी सरकार की प्राथमिकता बननी चाहिए। इसी तरह इस सरकार की एक अन्य प्राथमिकता देश के शहरों को सुव्यवस्थित करना होना चाहिए।


हमारे शहर इस समय आबादी के बोझ से चरमरा रहे हैं। उनका आधारभूत ढांचा कमजोर हो रहा है। यह तब है जब अगले 20 वर्षो में ग्रामीण क्षेत्रों से लगभग 10-20 प्रतिशत आबादी के शहरों की ओर पलायन करने के आसार हैं। हमारा कोई भी शहर इस समय दुनिया के अन्य विश्वस्तरीय शहरों से मेल नहीं खाता। इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकते कि बड़े शहरों को सुव्यवस्थित बनाने में सफलता नहीं मिल पा रही है। पिछली मोदी सरकार सौ शहरों को स्मार्ट बनाने की योजना जोर-शोर से लाई थी, लेकिन वह परवान नहीं चढ़ सकी। शहरों के विकास के लिए समग्र नीति के अभाव को इस बार खास महत्व दिया जाना चाहिए। चूंकि शहरी ढांचे को संवारने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों के स्थानीय निकायों पर है इसलिए केंद्र सरकार नीतिगत निर्देश जारी करने और धन देने के अतिरिक्त ज्यादा कुछ नहीं कर सकती। देखना है कि नई पारी में मोदी सरकार देश के पांच-छह बड़े महानगरों में व्यापक परिवर्तन करने के लिए क्या ठोस कदम उठाती है? अगर इन बड़े शहरों के ढांचे को ठीक किया जा सके तो अन्य शहरों को भी दुरुस्त करने की राह मिल सकती है।


देश की एक अन्य बड़ी समस्या कुपोषण और चरमराते हुए सरकारी स्वास्थ्य ढांचे की है। जैसे कुपोषण की समस्या को दूर करने पर ध्यान दिया जा रहा है वैसे ही सरकारी स्वास्थ्य ढांचे की समस्याओं को भी प्राथमिकता के आधार पर दूर किया जाना चाहिए। एक तरफ जहां सरकारी अस्पताल खस्ताहाल स्थिति में हैं वहीं डॉक्टरों और अन्य मेडिकल स्टाफ की भी कमी है। वहीं निजी अस्पतालों का नियमन भी सही तरीके से नहीं हो रहा है। स्वास्थ्य ढांचे को प्राथमिकता के आधार पर दुरुस्त करने के साथ ही इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि निर्धन तबके के लोग पौष्टिक भोजन कैसे हासिल करें? पौष्टिकता की कमी भारत को बीमार देश के रूप में चित्रित करने का काम कर रही है। बीमारियों से ग्रस्त रहने वाली आबादी देश की अर्थव्यवस्था को अपेक्षित गति नहीं दे सकती।


हर तरह के सुधारों को आगे बढ़ाने का दारोमदार नौकरशाही पर ही होता है। नौकरशाही की शिथिलता के कारण ही सुधारों को लागू करने और बेहतर नतीजे हासिल करने में कठिनाई आती है। बीते दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने अपने अधिकारियों से कहा था कि प्रधानमंत्री कार्यालय के अफसरों को प्रभावी होने के बजाय दक्ष होना चाहिए। उनका यह संदेश सिर्फ पीएमओ अफसरों के साथ अन्य नौकरशाहों को भी सुनना चाहिए। इस संदेश को समस्त नौकरशाही तक पहुंचाने और उसके तौर-तरीकों में बदलाव लाने की आवश्यकता है। अपने देश में नौकरशाही अंग्रेजों के जमाने के हिसाब से चल रही है। उसकी जबावदेही तय करनी ही होगी। आज अगर राजनीति में भ्रष्टाचार है तो नौकरशाही के कारण ही। सरकारी खजाने की लूट नौकरशाहों की मदद के बिना संभव नहीं। यदि कोई अनुचित काम होता है तो रिश्वतखोर अफसरों के कारण ही। नौकरशाही में सुधार हो, इसकी चिंता विपक्ष को भी करनी चाहिए।


चूंकि भाजपा की प्रचंड जीत के चलते विपक्ष हतोत्साहित है और इसके आसार कम हैं कि वह अपने रुख-रवैये में बदलाव लाएगा इसलिए मोदी सरकार को अपनी प्राथमिकताओं को लेकर खासा सतर्क रहना होगा। ऐसा लगता है कि विपक्ष यह समझने को तैयार नहीं कि नकारात्मक विरोध विरोधी पक्ष को ही लाभ पहुंचाता है। वास्तव में सत्तापक्ष के नकारात्मक रवैये के कारण ही कांग्रेस को बुरी पराजय का सामना करना पड़ा। कांग्रेस जैसा हाल पूर्वाग्रह से ग्रस्त मीडिया के एक बड़े हिस्से का भी है। इसी कारण उसके दावे ध्वस्त हो गए। कांग्रेस की तरह वह भी मोदी की जीत पचा नहीं पा रहा है। इसके चलते इसके आसार और कम हैं कि मोदी सरकार के कामकाज की समीक्षा तार्किक ढंग से हो सकेगी। इस स्थिति में यह और आवश्यक हो जाता है कि मोदी सरकार और उसके मंत्री सतर्कता बरतें और आत्ममुग्ध होने से बचें।


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चूंकि विपक्ष हतोत्साहित है और इसके आसार कम हैं कि वह अपने रुख-रवैये में बदलाव लाएगा इसलिए मोदी सरकार को अपनी प्राथमिकताओं को लेकर खासा सतर्क रहना होगा