विशिष्ट नेताओं की सुरक्षा का सवाल

हुल गांधी जिस तरह गुपचुप रूप से विदेश यात्र पर गए उसी तरह से वापस भी लौट आए। उनकी विदेश यात्र के बीच ही यह खबर आई कि केंद्र सरकार ने यह तय किया है कि एसपीजी सुरक्षा से लैस व्यक्तियों की विदेश यात्र में सुरक्षा कर्मी उनके साथ जाएंगे। इसका मतलब है कि भविष्य में यदि राहुल अथवा अन्य एसपीजी सुरक्षा वाला विशिष्ट व्यक्ति सुरक्षाकर्मियों को अपने साथ ले जाने से इन्कार करता है तो उसकी विदेश यात्र रोकी भी जा सकती है। इस प्रस्तावित व्यवस्था पर कांग्रेस कह रही है कि भारत सरकार विदेश यात्रओं के दौरान राहुल गांधी की जासूसी करना चाहती है। कांग्रेस नेताओं को इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि सुरक्षा मामले में लापरवाही के कारण आजादी के बाद अब तक महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्याएं हो चुकी हैं। इसके अलावा कुछ और महत्वपूर्ण जानें भी गई हैं। इन दुखद घटनाओं के बावजूद राहुल गांधी सावधानी बरतने से इन्कार कर रहे हैं। वह बिना सुरक्षा दस्ते के कंबोडिया की निजी यात्र पर चले गए। 2016 में जब राहुल गांधी को जान से मारने की धमकी मिली थी तो कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने तत्कालीन गृह मंत्री से मुलाकात कर उनसे आग्रह किया था कि वह राहुल गांधी की सुरक्षा का बेहतर प्रबंध करें। इसे ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने 9 मई, 2016 को एसपीजी और आइबी को निर्देश दिया था कि वे राहुल गांधी की सुरक्षा को लेकर अधिकतम सावधानी बरतें। पूर्व गृह मंत्री राजनाथ सिंह के संसद में दिए एक बयान के मुताबिक राहुल गांधी करीब 21 बार सुरक्षा नियमों का उल्लंघन कर चुके हैं। उनका यह भी कहना था कि अपनी विदेश यात्रओं में एसपीजी को नहीं ले जाकर राहुल गांधी लगातार सुरक्षा नियमों की अवहेलना करते रहे हैं। वर्ष 2017 में अपने गुजरात दौरे के समय राहुल गांधी ने एक निजी कार में सफर किया, जबकि एसपीजी नियमों के तहत ऐसा करना मना है। इसी तरह एक बार गणतंत्र दिवस के अवसर पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुरक्षा नियम को नजरअंदाज करते हुए भीड़ के बीच चले गए थे तो उसे खतरनाक माना गया था।


जाहिर है कुछ बड़े नेता पहले तो अपनी सुरक्षा को लेकर लापरवाही बरतते हैं, पर कोई अनहोनी होने पर उनकी पार्टी के लोग सरकार को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं। आजादी के बाद इस देश में ऐसा कई बार हो चुका है। मौजूदा केंद्र सरकार इस बात को लेकर चिंतित लग रही है कि फिर वैसी कोई नौबत न आ पाए! महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्याओं के विस्तार में जाने पर यह साफ हो जाता है कि सुरक्षा नियमों का कड़ाई से पालन हुआ होता तो संभवत: वे बहुमूल्य जानें बचाई जा सकती थीं, पर समस्या यह है कि इन घटनाओं के बावजूद हमारे अधिकांश नेता अब भी सबक नहीं ले रहे हैं। इतिहास से नहीं सीखना हमारी आदत में शुमार है।


चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह में एक बुजुर्ग गांधीवादी ने कहा था कि 'महात्मा गांधी पर बढ़ते खतरे की उस समय की सरकार ने अनदेखी की। हत्या से कुछ ही दिन पहले उनकी प्रार्थना सभा में बम फटा, लेकिन किसी ने सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम नहीं किया, जबकि दिल्ली की गद्दी पर तमाम गांधीवादी ही बैठे हुए थे।' आम धारणा यही है जो उस गांधीवादी ने कही, पर असलियत यह है कि तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल गांधी जी के लिए अभेद्य सुरक्षा व्यवस्था करना चाहते थे, लेकिन महात्मा गांधी ने पटेल को यह धमकी दे दी कि यदि प्रार्थना सभा में आने वाले किसी भी व्यक्ति की तलाशी ली गई तो वह उसी क्षण से आमरण अनशन शुरू कर देंगे। इससे पटेल सहित पूरी सरकार सहम गई थी। उस उम्र में अनशन गांधी जी के लिए खतरनाक साबित हो सकता था। इसलिए गांधी जी इच्छा के खिलाफ जाकर उनकी सुरक्षा की कोई विशेष व्यवस्था नहीं की गई। सरदार पटेल ने कहा था कि 'मैंने स्वयं गांधी जी से पुलिस को उनकी रक्षा के लिए कर्तव्य पालन की अनुमति देने के लिए वकालत की, परंतु हम असफल रहे।' याद रहे कि 30 जनवरी, 1948 को नाथू राम गोडसे ने प्रार्थना सभा में गांधी जी की हत्या कर दी थी। यदि तलाशी की व्यवस्था होती तो गोडसे पिस्तौल लेकर बिड़ला भवन में नहीं पहुंच पाता।


ऑपरेशन ब्लू स्टार की पृष्ठभूमि में 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आवास से सिख सुरक्षाकर्मियों को हटा दिया गया था। ऐसा इंदिरा जी की पूर्वानुमति के बिना संबंधित अफसरों ने किया था। खुफिया रिपोर्ट के आधार पर संबंधित अफसरों ने खुद यह कदम उठाया था, पर जब इंदिरा जी को पता चला तो उन्होंने सिख सुरक्षाकर्मियों को अपनी सुरक्षा में वापस बुला लिया। उन्हीं सुरक्षाकर्मियों के हाथों उनकी हत्या हुई। इंदिरा जी ने यह कदम तो इस दृष्टि से उठाया था कि किसी पूरे समुदाय पर अविश्वास कैसे किया जा सकता है, लेकिन उस घटना ने देश को यह शिक्षा जरूर दे दी कि ऐसे मामलों में नेताओं को खुद निर्णय नहीं करना चाहिए। याद कीजिए कि इंदिरा गांधी की हत्या के प्रतिशोध में देश में हजारों सिखों का संहार कर दिया गया। इसी के साथ 21 मई, 1991 की उस दर्दनाक घटना को भी एक बार फिर याद कर लें। उस दिन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर गए थे। उन्हें देखने सुनने वालों की काफी भीड़ थी। उसी भीड़ में लिट्टे आतंकी भी थे। मानव बम बनी धनु राजीव गांधी के नजदीक पहुंचना चाहती थी। एक सुरक्षाकर्मी अनुसूइया उसे रोक रही थी। दूर खड़े राजीव गांधी ने उससे कहा कि वह उसे आने दे। धनु पास गई और सब कुछ समाप्त हो गया। बाद में कांग्रेस ने यह आरोप लगाया कि वीपी सिंह सरकार ने राजीव गांधी की एसपीजी सुरक्षा वापस ले ली थी, जबकि हकीकत यह थी कि एसपीजी से संबंधित कानून राजीव गांधी के कार्यकाल में ही बना था। उसमें प्रतिपक्ष के नेता को वैसी सुरक्षा नहीं मिलनी थी। याद रहे कि जब राजीव की हत्या हुई तब केंद्र में कांग्रेस समर्थित चंद्रशेखर की सरकार थी।


एसपीजी सुरक्षा कैसी हो, यह तय करने का काम नेता नहीं कर सकते। क्या ऐसा कोई कानून नहीं बन सकता कि खुद पर खतरा आमंत्रित करने वाले नेताओं को नियमों के दायरे में रहने के लिए विवश किया जा सके? ध्यान रहे कि बड़ी हस्तियों की हत्याओं से उनके परिवार के साथ-साथ देश का भी नुकसान होता है। कभी-कभी तो ऐसी हत्या के बाद भीषण दंगे भी हो जाते हैं जिनमें अनेक जानें जाती हैं। उम्मीद है कि राहुल गांधी और कांग्रेस के बड़े नेतागण पूर्व की इन घटनाओं से सबक लेंगे।


(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)


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