अयोध्या फैसला: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने निकाले 10 निष्कर्ष

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की वर्किंग कमेटी की रविवार को लखनऊ में हुई बैठक में सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर के फैसले से 10 निष्कर्ष निकाले गए। इन निष्कर्षों पर ही बैठक की पूरी चर्चा केन्द्रित रही। इन  निष्कर्षों के आधार पर बोर्ड की बैठक में तय हुआ कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कई बिन्दुओं पर न केवल विरोधाभास है ।


1-बाबरी मस्जिद का निर्माण बाबर के कमांडर मीर बाकी द्वारा 1528 में कराया गया। यह मुकदमा संख्या -5 के वादी ने अपने वाद पत्र में स्वयं माना है और उच्चतम न्यायालय ने उसे स्वीकार किया है।


2-मुसलमानों द्वारा दिए गए साक्ष्य के आधार पर यह साबित है कि 1857 से 1949 तक बाबरी मस्जिद का तीन गुम्बद वाला भवन और मस्जिद का अंदरूनी सहन मुसलमानों के कब्जे व प्रयोग में रहा है, इसे भी उच्चतम न्यायालय ने स्वीकार किया है।


3-बाबरी मस्जिद में अंतिम नमाज 16 दिसम्बर 1949 को पढ़ी गई थी, उच्चतम न्यायालय ने इसे भी स्वीकार किया है।


4- 22/23 दिसंबर 1949 की रात में बाबरी मस्जिद के बीच वाले गुम्बद के नीचे चुपके से रामचन्द्र जी की मूर्ति रखी गई, उच्च्तम न्यायालय ने इसे भी स्वीकार किया।


5-बाबरी मस्जिद के बीच वाले गुम्बद के नीचे की भूमि को जन्म स्थान के रूप में पूजा किया जाना साबित नहीं है। इसलिए मुकदमा संख्या-5 के वादी संख्या 2 (जन्मस्थान) को डेयटी नहीं माना जा सकता।


6-उच्चतम न्यायालय के निर्णय में कहा गया कि मुसलमानों द्वारा दायर किए गए मुकदमा संख्या-4 मियाद के अंदर है और आंशिक रूप से डिक्री यानि स्वीकार किए जाने योग्य है।


7- उच्च्तम न्यायालय ने यह भी माना कि 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराये जाने का काम भारत के सेकुलर संविधान के खिलाफ था।


8-फैसले में यह भी कहा गया कि विवादित भवन में चूंकि हिन्दू भी सैकड़ों साल से पूजा करते रहे हैं इसलिए पूरे विवादित भवन की जमीन वांद संख्या-5 के वादी संख्या-1 भगवान श्री रामलला को दी जाती है।


9-चूंकि विवादित जमीन मुकदमा संख्या-5 के वादी संख्या-1 को दी गई है इसलिए मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन केंद्र सरकार द्वारा या तो अधिग्रहीत जमीन या राज्य सरकार द्वारा अयोध्या में किसी अन्य प्रमुख स्थान पर दी जाए जिस पर मस्जिद बन सके। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद-142 में दी गई शक्तियों का प्रयोग करके पारित किया है। जिसके अनुसार 5 एकड़ जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिए जाने का निर्देश दिया गया है।


10-उच्चतम न्यायालयने एएसआई की रिपोर्ट की बुनियाद पर यह बात स्वीकार की है कि किसी मंदिर को तोड़कर मस्जिद नहीं बनायी गई। बोर्ड की बैठक में इस पर भी जोर दिया गया कि 22/23 दिसम्बर 1949 की रात में बाबरी मस्जिद के गुम्बद के नीचे रखे जाने के संबंध में दर्ज एफआईआर और उत्तर प्रदेश सरकार, फैजाबाद के डीएम और एसपी के द्वारा मुकदमा संख्या-1 और 2 में दाखिल जवाब में यह स्वीकार किया जा चुका है कि उपरोक्त मूर्तियां चुपके से रखी गई थीं। उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने 30 सितम्बर 2010 के निर्णय में भी उपरोक्त मूर्तियों को डेयटी नहीं माना था।