ईंट और पत्थर जोड़कर बना डाला विद्यालय का रास्ता जागरण विशेष

शिवराज वर्मा ' सतरिख (बाराबंकी)


परों से कुछ नहीं होता, हौसले से उड़ान होती है। संसाधनों का रोना रोने के बजाय यदि हौसले को बुलंद रखा जाए तो कठिन से कठिन काम आसान हो जाता है। यह किसी पन्ने में लिखे उपदेश मात्र नहीं बल्कि प्राथमिक विद्यालय दरामनगर के स्टॉफ की बुलंद हौसले को बयां करती हकीकत है। स्कूल गेट से भवन तक ऊबड़-खाबड़ रास्ते की मरम्मत की सुनवाई अफसरों ने नहीं की तो स्टॉफ ने खुद राह सुगम करने की ठान ठान ली। राह के रोड़े ही उनकी रास्ते की मरम्मत के काम आए। रास्ते में पड़े टूटे ईंट और पत्थर को जोड़कर विद्यालय का मार्ग पक्का बना डाला गया।


नगर पालिका परिषद नवाबगंज के परिसीमन के दौरान दरामनगर को बंकी ब्लॉक की ग्राम पंचायत से तो अलग कर दिया गया पर पालिका क्षेत्र का हिस्सा नहीं बनाया गया। इस कारण इस गांव के लिए सरकारी योजनाएं दूर की कौड़ी बनी हुई हैं। प्राथमिक विद्यालय में करीब सात वर्षों से किसी तरह का कोई कार्य नहीं कराया गया है। साफ-सफाई के लिए कर्मचारी तक भी तैनात नहीं है। बंकी ब्लॉक के अन्य गांव में जर्जर विद्यालयों का कायाकल्प कराया जा रहा है, लेकिन यहां रास्ता तक दुरुस्त कराने वाला कोई नहीं है। वर्षों से रास्ते की समस्या जूझ रही विद्यालय में तैनात महिला अध्यापकों ने एकजुटता दिखाकर छात्रों के सहयोग से विद्यालय में इधर-उधर बिखरी पड़ी ईंट और पत्थर इकट्ठा किया। इसके बाद विद्यालय के मुख्य द्वार से लेकर भवन तक परिसर में खड़ंजा बिछाकर मार्ग को पक्का बना डाला। इसका नेतृत्व प्रधानाध्यापक संगीता ने किया। इसमें रुकैया हसन सहित विद्यालय की अन्य टीम ने पूर्ण योगदान दिया। छात्रों ने अपने गुरुजनों का सहयोग किया। दरामनगर के ग्रामीणों का कहना है कि अध्यापिकाओं का यह योगदान सराहनीय है।



दरामनगर प्राथमिक विद्यालय में बच्चों द्वारा लगाया गया खड़जा ' जागरण


विद्यालय जाने के लिए नहीं था रास्ता इधर-उधर बिखरी ईंट और पत्थरों को एकत्र कर बच्चों और टीचर्स स्टाफ ने खुद बनाई सड़क