घाघरा ने लौटाई जमीन दबंगों ने किया कब्जा

 बाराबंकी : 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' की कहावत सामान्य तौर पर गांवों में कही जाती है लेकिन घाघरा नदी की तराई में 'जिसकी लाठी उसकी जमीन' की कहावत चरितार्थ है। नदी के किनारे की जमीनों पर अवैध कब्जा करने की होड़ है। हद तो यह कि ऐसी जमीन भी दबंग नहीं छोड़ रहे जिसे घाघरा नदी ने अपनी आगोश से वापस लौटा दी। जमीन के असल मालिक बाढ़ पीड़ित जमीन को पाने के लिए अधिकारियों की चौखट पर माथा टेकने को विवश हैं।


तहसील रामनगर क्षेत्र का पर्वतपुर गांव के ग्रामीण घाघरा नदी की बाढ़ से पीड़ित रहे हैं। यहां के निवासी हरिशंकर मिश्र वर्ष 1996 में जब प्रधान थे तब तत्कालीन डीएम अरुण आर्य ने प्राथमिक स्कूल बल्लोपुर में बाढ़ पीड़ितों के लिए राहत शिविर आयोजित कराकर जमीन का पट्टा दिया गया था। हरिशंकर मिश्र ने बताया कि गांव के पन्नालाल, रामसागर, राजेंद्र, संतराम, सुखराम, विजय, बुधई, तीरथ, मुसाफिर, कल्लू, फूलचंद्र, सरजू प्रसाद, प्रकाश चौहान, गुड्डू, हनीफ, मुश्ताक, कमलू, गोबरे, जयनरायन, जगदीश, छोटे, रामलखन, रामतीरथ, हींगू, लल्लन, भगौती, गयाप्रसाद, लाल बहादुर, इंदल, राजीव पांडेय, केशन आदि करीब चार दर्जन ग्रामीणों को जमीन का पट्टा दिया गया था।


अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को 12-12 बीघे व भूमिहीनों को पांच-पांच बीघे पट्टा मिला लेकिन दूसरे ही साल घाघरा नदी की कटान में सारी भूमि समा गई। अब पिछले दो साल में घाघरा नदी का रुख दूसरी तरफ हो गया है। ऐसे में पट्टे वाली भूमि छूट गई है मगर इस भूमि पर गांव के दबंगों ने कब्जा कर फसल बो ली। हरिशंकर का कहना है कि उन्होंने डीएम से इसकी शिकायत की थी। मगर अब तक कुछ नहीं हो सका है।



पर्वतपुर गांव निवासी यह लोग उसी जमीन पर खड़े हैं जो घाघरा नदी में कट गई थीपर्वतपुर के जिन ग्रामीणों को जमीन का पट्टा दिया गया था। उसकी दोबारा समीक्षा कराकर कब्जा दिलाया जाएगा। यह भी देखा जाएगा कि नदी के किनारे की जमीन की स्थिति घाघरा का रुख बदलने के बाद मौजूदा समय क्या है?


संदीप कुमार गुप्ता, एडीएम