चुनावी गठबंधन के एक महीने के अंदर सुप्रीम कोर्ट से वापस ले ली थी अपील
नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव से पूर्व उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा ने ढाई दशक की दुश्मनी को खत्म कर जिस दोस्ती का हाथ मिलाया था, अब वह दोस्ती तो नहीं रही लेकिन 1995 के गेस्ट हाउस कांड के मामले में मुलायम सिंह के खिलाफ दर्ज मुकदमा खत्म हो गया है। चुनावी गठबंधन के एक महीने बाद मायावती ने सुप्रीम कोर्ट से औपचारिक रूप से मुकदमा वापस ले लिया था। मायावती ने ऐसा करने का संकेत देकर सपा को उत्साहित तो किया था लेकिन कभी औपचारिक रूप से इसकी घोषणा नहीं की गई।
सुप्रीम कोर्ट में बसपा की अपील पूरे 15 साल लंबित रही। दोनों दलों के बीच बातचीत और समझौता होने की संभावनाओं के आधार पर पहले तो कई सुनवाइयों पर दोनों पक्षों ने सहमति से कोर्ट से अपीलों पर सुनवाई का स्थगन लिया। इसके बाद 26 फरवरी 2019 को बसपा की ओर से पेश वकील ने सुनवाई कर रही पीठ के न्यायाधीश एनवी रमना, इंद्रा बनर्जी और हेमंत गुप्ता के समक्ष अपील वापस लेने की इजाजत मांगी। 26 फरवरी के आदेश में कोर्ट ने यह भी दर्ज किया है कि आठ जनवरी को दोनों पक्षों की ओर से संयुक्त रूप से अनुरोध किया गया था इसलिए उन्हें चार सप्ताह का समय दिया जाए। आठ जनवरी से पहले यह मुकदमा गत वर्ष 14 नवंबर, 2019 सितंबर को भी लगा था और इन तारीखों पर भी पक्षकारों ने आपस मे समझौते की बातचीत चलने के आधार पर सुनवाई स्थगित करा ली थी। यह बात इन तारीखों पर सुनवाई स्थगित करने के कोर्ट के आदेश में दर्ज है।
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 24 फरवरी 2004 के आदेश को चुनौती देने वाली बसपा की विशेष अनुमति याचिकाओं पर पहली बार नोटिस पांच मई 2004 को किया था। 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने बसपा की विशेष अनुमति याचिकाओं को विचारार्थ स्वीकार किया था जिसके बाद दोनों विशेष अनुमति याचिकाएं क्रिमनल अपील में तब्दील हो गईं थीं।
बता दें कि वर्ष 1995 में हुई घटना के बाद इस केस में आरोपपत्र दाखिल हुआ था। मजिस्ट्रेट ने संज्ञान भी लिया लेकिन बाद में मजिस्ट्रेट नें आरोपपत्र पर संज्ञान लेने और अभियुक्तों को समन करने का अपना आदेश वापस ले लिया। आदेश वापस लेने के खिलाफ प्रदेश सरकार हाईकोर्ट गई लेकिन हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट के आदेश वापस लेने को सही ठहराया। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा था कि विधायक पब्लिक सर्वेंट नहीं होते इसलिए भ्रष्टाचार निरोधक कानून उन पर लागू नहीं होगा। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ बसपा नेता बरखूराम वर्मा और राम अचल राजभर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी।
सात सितंबर 2016 को जब हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली बसपा की अपील नियमित सुनवाई पर आई थी तो उस दिन मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस जेएस खेहर और अरुण मिश्र की पीठ ने बसपा की पैरोकारी कर रहे वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल से सवाल किया था कि मंत्री पद की पेशकश करना भ्रष्टाचार निरोधक कानून के दायरे में कैसे आएगा। पीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा था कि गठबंधन सरकार में दल पहले ही बैठ कर तय कर लेते हैं कि कितने विधायकों को मंत्री बनना है। मंत्री पद गठबंधन सरकार का आधार होता है। ऐसे में मंत्री पद की पेशकश रिश्वत कैसे माना जाएगा। पीठ ने कहा था कि ये गलत हो सकता है, दल बदल कानून में भी आ सकता है लेकिन भ्रष्टाचार कानून के दायरे में ये कैसे आएगा।
गेस्ट हाउस कांड के बाद बदल गई थी सियासी तस्वीर 8
इसी वर्ष हुए लोकसभा चुनाव के दौरान सपा-बसपा में गठबंधन हुआ था। मायावती ने मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव के लिए प्रचार भी किया था (फाइल फोटो)
के गेस्ट हाउस कांड के मामले में पूर्व सपा प्रमुख के खिलाफ दर्ज हुआ था मुकदमा साल में कई बार दोनों पक्षों ने सुनवाई पर लिया था स्थगनादेश
लखनऊ में हुई थी घटना
घटना दो जून 1995 को लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित वीआइपी गेस्ट हाउस में हुई थी। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) की तत्कालीन सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। उस समय मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे। बसपा का आरोप था कि समर्थन वापस लेने के बाद सपा ने उसके पांच विधायकों का गेस्ट हाउस से अपहरण कर लिया और उन्हें विक्रमादित्य मार्ग ले गए जहां मुलायम सिंह व अन्य मंत्री मौजूद थे। वहां विधायकों को समर्थन के बदले में 50-50 लाख रुपये और मंत्री पद का प्रलोभन दिया गया। इसी मामले को लेकर मायावती ने गेस्ट हाउस में बसपा के विधायकों की बैठक बुलाई थी। इसकी सूचना सपा नेताओं को मिली तो उन्होंने गेस्ट हाउस पर हमला बोल दिया। मायावती खुद को बचाने केलिए कमरे में बंद हो गईं। सपा कार्यकर्ता बाहर से दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहे थे। इसके बाद वहां लोग जुटने लगे तो सपाइयों के तेवर कुछ नरम हुए।
12 अभियुक्त बनाए गए थे
इस मामले में मुलायम सिंह, शिवपाल, आजम खां और सपा के कई वरिष्ठ नेताओं सहित कुल 12 अभियुक्त थे। इससे जुड़ा एससीएसटी एक्ट उल्लंघन का भी एक मामला था जिसे हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था। बसपा ने उसके खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। बरखूराम वर्मा की मृत्यु होने के बाद राम अचल राजभर अपील पर पैरवी जारी रखे रहे थे।